Shirish Ke Phool B.ed Hindi Lesson Plan For Class 12
संक्षिप्त विवरण (Brief Description)
Sr. No. | Headings | Details |
---|---|---|
1 | पाठ योजना प्रकार (Lesson Plan Type) | दैनिक पाठ योजना (Daily Lesson Plan) |
2 | विषय (Subject) | हिंदी (Hindi) |
3 | उपविषय (Sub-Subject) | गद्य (Gadya) |
4 | प्रकरण (Topic) | शिरीष के फूल (Shirish Ke Phool) |
5 | कक्षा (Class) | 12th |
6 | समयावधि (Time Duration) | 35 Minute |
7 | उपयोगी (Useful for) | B.ed, Deled, BSTC, BTC, Nios Deled |
हेल्लो दोस्तों स्वागत है आपका Lesson Plan World पर | अगर दोस्तों आप हिंदी का लेसन प्लान (Hindi ka Lesson Plan) तलाश रहे है तो अब आपकी बीएड (B.ed) के लिए हिंदी लेसन प्लान (Hindi Lesson Plan) की तलाश पूरी हो चुकी है | क्योंकि आज हम आपके लिए लाये है कक्षा 12 (Class 12th) की हिंदी लेसन प्लान (Hindi Lesson Plan) जो कि पद्य भाग यानी की कहानी पर बनाई गयी है | इस हिंदी लेसन प्लान (Hindi Lesson Plan) का प्रकरण हजारी प्रसाद द्विवेदी जी द्वारा रचित शिरीष के फूल (Shirish Ke Phool) कहानी से लिया गया है |
NCERT Class 12th Hindi Lesson Plan for B.ed
शिक्षण– उद्देश्य :-
1. ज्ञानात्मक –
- साहित्य-कला, कवि-कर्म, सच्चे साहित्यकार और देश की महान् विभूतियों के बारे में ज्ञान प्रदान करना।
- भारतीय सामाजिक – जीवन की जानकारी देना।
- भारतीय सांस्कृतिक इतिहास तथा राजनीति से परिचित कराना।
- देश की विभिन्न समस्याओं से परिचित कराना।
- शिरीष के पेड़ के बारे में अधिक जानकारी देना।
- सामाजिकता का पाठ पढ़ाना।
- नए शब्दों के अर्थ समझकर अपने शब्द- भंडार में वृद्धि करना।
- साहित्य के गद्य –विधा ( लेख) की जानकारी देना।
- छात्रों को हिन्दी के साहित्यकारों के बारे में जानकारी देना।
- नैतिक मूल्यों की ओर प्रेरित करना।
2. कौशलात्मक –
- स्वयं लेख लिखने की योग्यता का विकास करना।
- पाठ में वर्णित घटनाओं का प्रामाणिक तथ्य प्रस्तुत करना।
3. बोधात्मक –
- साहित्यकार आचार्य हजारी प्रदास द्विवेदी जी के जीवन-वृत्त से परिचित होना।
- रचनाकार के उद्देश्य को स्पष्ट करना और सच्ची कला को समझना।
- लेख में वर्णित महत्त्वपूर्ण नैतिक मूल्यों की सूची बनाना।
- समाज में जीवन के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण का विकास करना।
4. प्रयोगात्मक –
- लेख मे वर्णित बातों को अपने दैनिक जीवन के संदर्भ में जोड़कर देखना।
- शिरीष के पेड़ के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना।
- समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों का चरित्र-चित्रण करना ।
- लेख का सारांश अपने शब्दों में लिखना।
शिक्षण सहायक सामग्री:-
- चाक , डस्टर आदि।
- पावर प्वाइंट के माध्यम से पाठ की प्रस्तुति।
पूर्व ज्ञान:-
- साहित्य-कला, कवि-कर्म, सच्चे साहित्यकार और देश की महान् विभूतियों के प्रति रुचि है।
- समाज की विभिन्न समस्याओं का ज्ञान है।
- सामाजिक जीवन की अच्छाइयों और बुराइयों से परिचित हैं।
- कुछ ने शिरीष के पेड़ देखे हैं।
- लेख विधा का ज्ञान है।
- साहित्यिक-भाषा की थोड़ी-बहुत जानकारी है।
- मानवीय स्वभाव की जानकारी है।
प्रस्तावना – प्रश्न :-
- बच्चो! क्या आप साहित्य-कला, कवि-कर्म, सच्चे साहित्यकार और देश की महान् विभूतियों से परिचित हैं ?
- क्या आप शिरीष के पेड़ से परिचित हैं ?
- क्या आपने कभी किसी साहित्यकार से मुलाकात की है?
- मनुष्य की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए।
- क्या आप अपने समाज तथा देश की वर्तमान राजनीति से परिचित हैं?
- आप समाज में किस प्रकार के बदलाव देखते हैं?
उद्देश्य कथन :- बच्चो! आज हम प्रसिद्ध लेखक “आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी” के द्वारा रचित लेख “शिरीष के फूल” का अध्ययन करेंगे।
इन्हें भी देखे:-
- Ateet Mein Dabe Paon Class 12 B.ed Hindi Lesson Plan
- Geet Ageet Class 9 Hindi Lesson Plan For B.ed Deled
- छोटा मेरा खेत – Class 12 Hindi Path Yojna
- जामुन का पेड़ – 11th Class Hindi Lesson Plan
- अक्क महादेवी-हिंदी लेसन प्लान कक्षा 11 पीडीएफ
शिरीष के फूल हिंदी पाठ योजना की इकाइयाँ—
प्रथम अन्विति— ( जहाँ बैठ के …………पेड़ बनवा लें )
- जेठ की जलती धूप में ऊपर से नीचे तक फूलों से लदे शिरीष के पेड़।
- शिरीष की अन्य पेड़ों से तथा अवधूतों से तुलना।
- शिरीष के पेड़ की विशेषता।
- शिरीष के पेड़ पर झूला।
द्वितीय अन्विति : ( शिरीष का फूल…………….सुनता नहीं। मरने दो। )
- संस्कृत साहित्य में वर्णित शिरीष के फूलों की कोमलता।
- शिरीष के मज़बूत फूल। पुराने की अधिकार लिप्सा। महाकाल देवता के कोड़े।
- शिरीष अवधूत की तरह। कबीर तथा का्लिदास की तुलना शिरीष से।
- कर्णाट-राज की प्रिया विज्जिका देवी के कवियों के प्रति विचार।
तृतीय अन्विति— ( कलिदास वज़न ठीक …………अवधूत आज कहाँ है ! )
- कालिदास और शकुंतला की सुंदरता। राजा दुष्यंत को शकुंतला के चित्र में शिरीष के फूल न होने से कमी नज़र आना।
- सौंदर्य और कला की परख करने में समर्थ सच्चे, अनासक्त कवि – कालिदास, सुमित्रानंदन पंत तथा कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर।।
- प्रचंड धूप में भी फूलने की शक्ति रखने वाला एक अवधूत की तरह शिरीष का पेड़ ।
- देश में मचा मारकाट तथा शिरीष की तरह अविचल गाँधी जी।
Shirish Ke Phool 12th Class Hindi Lesson Plan for B.ed
शिक्षण विधि :-
क्रमांक | अध्यापक – क्रिया | छात्र – क्रिया |
1. | लेख का सारांश :- “शिरीष के फूल” निबंध की शुरुआत ही एक तीखे संघर्ष चित्रा से होती है, ‘जेठ की तपती धूप में, जब कि धरित्री निर्धूम अग्निकुंड बनी हुई थी, शिरीष नीचे से ऊपर तक फूलों से लद गया था।’ कालिदास के साहित्य में शिरीष के प्रसंग अशोक से कुछ घटकर नहीं हैं, द्विवेदी जी चाहते तो शिरीष के सौंदर्य चित्रों की कला दीर्घा ही सजा देते लेकिन इस निबंध में उनका ध्यान शिरीष की ‘सुषमा’ की ओर कम, ‘संघर्ष’की ओर ज्यादा है। वह सुकुमारता से अधिक ‘जीवन की अजेयता’ का मंत्रा घोष करता है। यहां से द्विवेदी जी के निबंधों में एक नया बिंब शुरू होता है, वह है, ‘अवधूत’ का। ‘अशोक के फूल’ में‘महाकाल’ थे, ‘शिरीष के फूल’ में अवधूत हैं। महाकाल इतिहास की गति को दर्शाते हैं, अवधूत संघर्ष की फक्कड़पन मस्ती को। शिरीष एक अवधूत है क्योंकि दुःख हो या सुख, वह हार नहींमानता-सुखम् वा यदि वा दुःखम्। सुख और दुःख में स्थिर रहना-यह एक नया सुर है जो द्विवेदी जी के निबंधों में केवल ‘शिरीष के फूल’ और ‘कुटज’ में मौजूद है। ‘आम फिर बौरा गए’ का सामयिकसंदर्भ इसमें भी आता है जब द्विवेदी जी देश विभाजन के वात्याचक्र के भीतर भी स्थिर रह सकने वाले गांधी जी की याद दिलाते हैं, ‘हमारे देश के ऊपर से जो यह मारकाट, अग्निदाह, लूटपाट, खून-खच्चरका बवंडर बह गया है उसके भीतर भी क्या स्थिर रहा जा सकता है? शिरीष रह सका है। अपनेदेश का एक बूढ़ा रह सका था।’ यह शिरीषधर्मा, बूढ़ा अवधूत गांधीजी हैं। निबंध का मार्मिक अंतइस प्रकार होता है- ‘मैं जब-जब शिरीष की ओर देखता हूं तब-तब हूक उठती है- हाय, वह अवधूतआज कहां है?’ यह निबंध गांधीजी की हत्या से उठने वाली हूक से समाप्त होता है। यहाँ प्रस्तुत ललित निबंध ‘ शिरीष के फूल ’ लेखक के संग्रह ‘ कल्पलता ’ से उद्धृत है। इसमें लेखक आँधी, लू और गर्मी की प्रचंडता में भी अवधूत की तरह अविचल रहकर कोमल पुष्पों के सौंदर्य बिखेर रहे शिरीष के माध्यम से मनिष्य की अजेय जिजीविषा और तुमुल कोलाहल के बीच धैर्यपूर्वक, लोक के साथ चिंतारत, कर्त्तव्यशील बने रहने को महान् मानवीय मूल्यों के रूप में स्थापित करता है। ऐसी भावधारा में बहते हुए उसे देह बल के ऊपर आत्मबल का महत्त्व सिद्ध करने वाली इतिहास विभूति गाँधी जी की याद हो आती है तो वह गाँधीवादी मूल्यों के अभाव की पीड़ा से भी कसमसा उठता है। निबंध की शुरुआत में लेखक शिरीष पुष्प की कोमल सुंदरता के जाल बुनता है, फिर उसे भेदकर उसके इतिहास में और फिर उसके ज़्ररिये मध्यकाल के सांस्कृतिक इतिहास में पैठता है; फिर तकालीन जीवन व सांमती वैभव-विलास को सावधानी से उकेरते हुए उसका खोखलापन भी उजागर करता है। लेखक अशोक के फूल के भूल जाने की तरह ही शिरीष को नज़रांदाज़ किए जाने की साहित्यिक घटना से आहत है और इसी में उसे सच्चे कवि का तत्त्व-दर्शन भी होता है। उसके अनुसार योगी की अनासक्त शून्यता और प्रेमी की सरस पूर्णता एक साथ उपलब्ध होना सत्कवि होने की एकमात्र शर्त है। ऐसा कवि ही समस्त प्राकृतिक और मानवीय वैभव में रमकर भी चुकता नहीं और निरंतर आगे बढ़ते जाने की प्रेरणा देता है। शिरीष के पुराने फलों की अधिकार-लिप्सु खड़खड़ाहट और नए पत्ते-फलों द्वारा उन्हें धकियाकर बाहर निकालने में लेखक साहित्य, समाज व राजनीति में पुरानी और नयी पीढ़ी के द्वंद्व को संकेतित करता है तथा स्पष्त रूप से पुरानी पीढ़ी और हम सब में नयेपन के स्वागत का साहस देखना चाहता है। इस निबंध का शिल्प इसी में चर्चित इक्षुदंड की तरह है – सांस्कृतिक संदर्भों व शब्दावली की भड़कीली खोल के भीतर सहज भावधारा के मधुरस से युक्त। यह हर तरह से आस्वाद्य और प्रयोजनीय है तथा इस प्रकार लेखक के प्रतिनिधि निबंधों में से एक है। | लेख को ध्यानपूर्वक सुनना और समझने का प्रयास करना। आधुनिकता की भावना को आत्मसात करते हुए अतीत से प्रेरणा प्राप्त करना। |
2. | लेखक परिचय :- हजारी प्रसाद द्विवेदी जन्म: सन् १९०७, आरत दुबे का छपरा, बलिया, उत्तरप्रदेश में। प्रमुख रचनाएँ : अशोक के फूल, आलोक पर्व, प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद ( निबंध संग्रह), बाणभट्त की आत्मकथा, चारुचंन्द्रलेख, पुनर्नवा, अनामदास का पोथा (उपन्य्सा), सुर साहित्य, कबीर, मध्यकालीन बोध का स्वरूप, नाथ संप्रदाय, कालिदास की लालित्य योजना, हिन्दी साहित्य का आदिकाल, हिन्दी साहित्य की भूमिका, हिन्दी साहित्य: उद्भव और विकास ( आलोचना-साहित्येतिहास); संदेश राशक, पृथ्वीराज रासो, नाथ-सिद्धों की बानियाँ (ग्रंथ संपादन), विश्वभारती (शांतिनेकितन) पत्रिका का संपादन। पुरस्कार व सम्मान : सहित्य अकादमी (आलोक पर्व), पद्मभूषण, लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट.। निधन : सन् १९७९, दिल्ली में। | लेखक के बारे में दी गई जानकारी को अभ्यास-पुस्तिका में लिखना। |
3. | शिक्षक के द्वारा कहानी का उच्च स्वर में पठन करना। | उच्चारण एवं पठन – शैली को ध्यान से सुनना। |
4. | कहानी के अवतरणों की व्याख्या करना। | लेख को हॄदयंगम करने की क्षमता को विकसित करने के लिए लेख को ध्यान से सुनना। लेख से संबधित अपनी जिज्ञासाओं का निराकरण करना। |
5. | कठिन शब्दों के अर्थ :- कर्णिकार – कनेर या कनियार नामक फूल, आरगव्ध – अमलतास नामक फूल, खंखड़ – ठूँठ / शुष्क, निर्घात – बिना आघात या बाधा के, अवधूत – सांसारिक बंधनों व विषय-वासनाओं ऊपर उठ हुआ संन्यासी, लँडूरे – पूँछ विहीन, हिल्लोल – लहर, अरिष्ठ – रीठा नामक वृक्ष, पुन्नाग – एक बड़ा सदाबहार पेड़, घनमसृण – घना-चिकना, परिवेष्टित – ढँका हुआ, बकुल – मौलसिरी का पेड़, तुंदिल – तोंद वाला या मोटे पेट वाला, मर्मरित – पत्तों की खड़खड़ाहट या सरसराहट से युक्त ध्वनि, उर्ध्वमुखी – प्रगति की दिशा में / ऊपर उठ हुआ , दुरंत – जिसका विनाश होना मुश्किल है, अनासक्त – विषय-भोग से ऊपर उठा हुआ, अनाविल – स्वच्छ, कर्णाट –प्राचीन काल का कर्नाटक राज्य, स्थिरप्रज्ञता – अविचल बुद्धि के अवस्था, विदग्ध – अच्छी तरह से तपा हुआ, कार्पण्य – कंजूसी, गण्डस्थल – गाल, कृषीवल – किसान, निर्दलित – भली-भाँति निचोड़ा हुआ, ईक्षुदण्ड – ईख (गन्ने) का तना, अभ्रभेदी – गगनचुंबी | शब्दार्थ अभ्यास-पुस्तिका में लिखना। |
6. | छात्रों द्वारा पठित पदों में होने वाले उच्चारण संबधी अशुद्धियों को दूर करना। | छात्रों द्वारा पठन। |
7. | पाठ में प्रयुक्त भाषा का व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करना।
| भाषा के इन अंगों के नियम, प्रयोग एवं उदाहरण को अभ्यास-पुस्तिका में लिखना। |
12th Class Hindi Lesson Plan Shirish Ke Phool
गृह – कार्य :-
- पाठ का सही उच्चारण के साथ उच्च स्वर मेँ पठन करना।
- पाठ के प्रश्न – अभ्यास करना।
- पाठ की प्रमुख सूचनाओं की संक्षेप में सूची तैयार करना।
- पाठ में आए कठिन शब्दों का अपने वाक्यों में प्रयोग करना।
परियोजना कार्य :-
- “सच्चा साहित्यकार” या “आज की राजनीति” या “शिरीष के पेड़” – इस विषय पर एक अनुच्छेद लिखिए।
- हर विषय, क्षेत्र, परिवेश आदि के कुछ विशिष्ट शब्द होते हैं। पाठ में संस्कृ्तनिष्ठ शब्दावली का बहुतायात प्रयोग हुआ है। उन शब्दों की सूची बनाइए।
- पाठ में प्रकृति एवं वनस्पति से जुड़ी बातों का उल्लेख है। प्रकृति के प्रति आपका दृष्टिकोण रुचिपूर्ण है या उपेक्षामय ? इसका मूल्यांकन करें।
मूल्यांकन :-
निम्न विधियों से मूल्यांकन किया जाएगा :-
- पाठ्य-पुस्तक के बोधात्मक प्रश्न—
- लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत की तरह क्यों माना है ?
- हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी ज़रूरी हो जाती है – स्पष्ट करें।
- द्विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन स्थितियों में अविचल रहकर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है। स्पष्ट करें।
- कोमल और कठोर दोनों भाव किस प्रकार गाँधी जी के व्यक्तित्व किए विशेषता बन गए ?
- सर्वग्रासी काल के एमार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता है, जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर गतिशीलता बनाए रखी है। पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।
- इकाई परीक्षाएँ
- गृह – कार्य
- परियोजना कार्य